आज ग्लेशियर लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुका है, जिसका असर कुछ दिन पहले उत्तराखंड के चमोली जिले में देखने को मिला और इसका खतरा आगे मंडराते जाएगा।
ग्लेशियर क्या है?
ग्लेशियर वास्तव में बर्फ का एक बहुत बड़ा समूह होता है, जहां बर्फ विशाल मात्रा में इकट्ठा ही जाती है ओर धीरे-धीरे करके अत्यधिक ठोस हो जाती है. जो धीरे धीरे बहती है। ग्लेशियर को हिंदी भाषा में हिमनद जाता है.
ग्लेशियर के प्रकार :
अगर हम ग्लेशियर के प्रकार की बात करें तो या मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
पहाड़ी ग्लेशियर (अल्पाइन ग्लेशियर, घाटी ग्लेशियर (Valley glacier))
बर्फ की चादर
ग्लेशियर कैसे बनते है?
यह उस स्थान पर बनती है जहाँ बहुत अधिक ठंड पड़ती हो. आप इसे हिमालय की पहाड़ियों में देख सकते हैं. वह क्षेत्र जहाँ पर बहुत अधिक ठंड होती है, और बर्फ हर साल बहुत अधिक मात्रा में जमा होती है. ठंड में बर्फबारी होने पर पहले से जमा बर्फ को जो नई बर्फ गिरती है वह पुरानी बर्फ को दबाने लगती है. उसके कारण बर्फ बहुत अधिक ठोसहो जाती है.
जिसके कारण जो हल्की क्रिस्टल, बर्फ के ठोस गोले के रूप में तब्दील हो जाती है. जिसे हम ग्लेशियर हैं. निरंतर बर्फबारी होने के कारण पुराने बर्फ को मतलब पुराने ग्लेशियर को दबाने लगती है, जिसके कारण बहुत अधिक कठोर हो जाती है इस प्रक्रिया को फॉर्म कहते हैं.
ग्लेशियर कैसे पिघलते है?
जैसे हमने पहले भी आपको बताया कि बर्फबारी के कारण बर्फ अधिक मात्रा में जमा हो जाता है. जिसके कारण वह पुरानी बर्फ को मतलब ग्लेशियर को दबाने लगती है. जिस प्रक्रिया को हम फॉर्म कहते हैं. निरंतर बर्फबारी के कारण दबाव पड़ने से ग्लेशियर बिना किसी तापमान के ही पिघलने लगते हैं, और उसी के साथ साथ वह बहने भी लगता है, बर्फ प्रति दिन सिर्फ कुछ सेंटीमीटर की बहती है.
हिमस्खलन ( Avalanche ) में तब्दील हो जाने के बाद यह बहुत अधिक खतरनाक हो जाते हैं जब तक यह हिमस्खलन में तब्दील नही होते हैं तब तक यह ज्यादा खतरनाक नही होते हैं।
हिमस्खलन में बहुत अधिक मात्रा में Glacier पहाड़ों से पिघलकर घाटियों में गिरने लगती है, जो आसपास के नदियों में जाकर कर मिल जाती है. जिससे नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है चुकि यह घाटियों में होती है, जिसके कारण पानी का बहाव बहुत तेज हो जाता है और जिसके कारण खतरा बहुत अधिक बड़ जाता है.
जो कुछ भी रास्ते में आता है जल उसे तबाह करते हुए आगे निकलता है। और जब ग्लेशियर पिघल कर पानी में मिलता है तो यहां बहुत ज्यादा अधिक विनाशक हो जाता है, हाल ही में यह घटना उत्तराखंड के चमोली में देखने को मिली है जहाँ ग्लेशियर टूटने से बहुत अथिक तबाही हुई, इस तबाही में भारत सरकार के विद्युत परिजोजना को तहस नहस कर दिया है,
उत्तराखंड : (चमोली आपदा ) ग्लेशियर पिघलने की घटना :
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को और बढ़ा दिया है, पहाड़ों में ऐसी घटनाएं ग्लेशियर और उनके पिघलने के कारण होती हैं. यह सभी कारण हिमालय पर झीलों की संख्या बढ़ा रहा है ।
उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने की वजह से बहुत बड़ा हादसा तो हो चुका है और अलकनंदा और धौली गंगा उफान पर है. जिसका कारण ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देना है। इस तबाही में भारत सरकार के विद्युत परिजोजना को तहस नहस कर दिया है.
हिमालय पर ग्लेशियर की स्थिति :
हिमालय क्षेत्र में 800 झीले बन चुकी है और इनका आकार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. यह सब तापमान वृद्धि के कारण हो रहा है, माना जाए तो ग्लेशियर पिघलने से भीषण तबाही का मंजर बन सकता है।
ग्लेशियर क्यों पिघलते है :
मुख्यतः ग्लेशियर पिघलने का कारण निरंतर बड़ते तापमान और कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीन हॉउस गैसों के कारण है.
वैज्ञानिकों के अनुसार
वैज्ञानिक की मानें तो जलवायु परिवर्तन से यह होने की संभावना मानी जा रही है इसका भी मुख्य कारण तापमान की वृद्धि ही है ।
IPCC(‘Intergovernmental Panel on Climate Change ‘) की रिपोर्ट के अनुसार एशिया के ऊंचे पर्वतों की ग्लेशियर अपनी एक तिहाई बर्फ खो सकते हैं. लेकिन यह तब होगा जब हमारी पृथ्वी से ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं हो पाएगा। जिससे पृथ्वी की सतह पर गर्मी बढ़ेगी और ग्लेशियर पिघलने लगेंगे. जिससे भयानक बाढ़ , नदियों , समुद्रों में असंतुलन भोजन , ऊर्जा खेती , प्रदूषण , पर्यावरण और सभी जनजीवन प्रभावित होगा।
पृथ्वी पर करीब दो लाख ग्लेशियर है. ध्रुवीय इलाकों के बर्फ की चादर तुलना में छोटे होने के कारण उस इलाके में ज्यादा आपदा देखने को मिलेगी. ग्लेशियर ही वहां पानी का स्त्रोत है और उनके आसपास रहने वाले लोगों को यह संकट पैदा कर सकती है। ग्लेशियर पिघलने से समुद्र तल का बढ़ना तो पक्का है जो आगे आपदा को बुलावा दे सकती है ।
एक स्वस्थ ग्लेशियर गर्मी में थोड़ा पिघलता है और ठंडी में बड़ा हो जाता है जिससे ठंड और गर्मी दोनों का संतुलन बरकरार रहता है.
अगर ग्लेशियर पिघल के पानी बन गए और पानी ग्लेशियर से आना बंद हो गया तो कृषि पर बहुत बड़ा संकट आ सकता है ग्लेशियर में से ही नदियों का माध्यम है ग्लेशियर ही नहीं रहेंगा तो नदियां सूख जाएगी।
लेकिन जब ग्लेशियर अधिक मात्रा में पानी बनकर नदियों निकलेगी तो यह नदियों समुद्रों को असंतुलित कर देगी जो एक भयावह सपने की तरह है।
FAQ :
ग्लेशियर क्या होता है?
हमारी पृथ्वी पर विशाल आकार की गतिशील बर्फ को ग्लेशियर कहते हैं, इसे हिमानी या हिमनद भी कहते हैं, यह विशाल आकार की बर्फ अपने अधिक वजन के कारण पर्वर्तीय ढालो के पीछे या नीचे की ओर बहती है, ग्लेशियर कहलाती है.
पृथ्वी का दसवां हिस्सा बर्फ से ढका हुआ है ग्लेशियर वहां बनते हैं जहां बर्फ हर साल जमा होते रहती है और उसके बाद बर्फ पिघलती है.
ग्लेशियर क्यों पिघलता है?
जहां ज्यादा मात्रा में बर्फबारी होती है उस इलाके में बर्फबारी के समय पुरानी बर्फ दबने लगती है और नई बर्फ की परत ऊपर जमने लगती है, जिससे यह बर्फ कठोर के साथ धनी भी होने लगती है, जिससे फर्म (firn) कहते हैं, अधिक मात्रा में बर्फ इकट्ठा होने के कारण यह बिना तापमान के ही पिघलने लगती है और अपने वजन के कारण बहने लगती हैं.
ग्लेशियर के पिघलने से क्या होता है?
ग्लोबल वार्मिंग ग्लेशियर का पिघलने का सबसे मुख्य कारण है ग्लेशियर के पिघलने से बाढ़ भूस्खलन सूखा अधिक तूफान आने की संभावना होती है, यह हमारे आने वाले भविष्य का सच है.
हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने का भारत के जल संसाधनों पर कितना दूरगामी प्रभाव पड़ेगा?
हिमालय के ग्लेशियर 10 नदियों के माध्यम से 2 अरब से अधिक लोगों को जीवन रेखा प्रदान करते हैं, इनके पिघलने से भयानक बाढ़, सूखा जैसी स्थिति पैदा हो सकती है बर्फ का पिघलना पर्वतों की स्थिरता के लिए खतरनाक हो सकता है, जो महत्वपूर्ण आधार को नष्ट कर सकता है कृषि जो कि मनुष्य के जीवन का आधार है, उसे भी बाधा उत्पन्न करेगा. समुद्र के किनारे बसे शहरों को भी यह उजाड़ देगा.
बर्फ की चादर के पिघलने का मुख्य कारण क्या है?
बर्फ की चादर पिघलने का कारण ग्लोबल वार्मिंग की वृद्धि है, वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नमी वाले क्षेत्रों में बारिश में काफी बदलाव देखने को मिलते हैं, ऊंचे ऊंचे ग्लेशियर पहाड़ की अपेक्षा अधिक तेजी से पिघलने लगी है, जो आने वाले बड़े और भयावह संकट को दावत है.
भारत में कितने ग्लेशियर है?
भारत में जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार 9575 ग्लेशियर है, जिनमें से 267 गलेशियर पर नजर रखी जाती है यह ग्लेशियर 10 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बड़े हैं.
विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर कौन सा है?
विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर ताजिकिस्तान के पामीर पर्वतों में स्थित फेन्द चेंको है यह पतला और लंबा ग्लेशियर हैं.
हिमालय के पिघलने के क्या कारण हो सकते है?
हिमालय के पिघलने का एक सबसे प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है, पिछले दो दशकों में लगभग हिमालय के ग्लेशियर ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं. 1975 से 2000 तक हर साल 400 करोड टन बर्फ पिघलती रही और उसके बाद के सालों में ग्लेशियर का पिघलना 2 गुना बढ़ चुका है, हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से भारत, चीन, नेपाल, भूटान जैसे देशों को काफी तबाही का सामना करना पड़ सकता है.
ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और वर्तमान समय में मानव जाति के लिए किस प्रकार हानिकारक है?
ग्लोबल वार्मिंग की वृद्धि से ग्लेशियर पिघल कर सिकुड़ सकते हैं, ग्रीनहाउस गैस की उच्च सांद्रता का पृथ्वी पर अधिक बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है. ग्लोबल वॉर्मिंग से बर्फ की चादर तेजी से पिघलती है जो जमीन से समुद्र तक पानी ले जाती है, और समुद्र में पानी का आयतन बहुत अधिक बढ़ता है, बर्फ के तेजी से पिघलने से बाढ़ जैसी आपदाएं आती है, और यही आपदाएं मानव-जाति के लिए अत्यधिक कष्टदायक है.
वैश्विक तापमान में वृद्धि मतलब ग्लोबल वॉर्मिंग में वृद्धि कहीं तूफान, कहीं बाढ़, जैसी स्थिति लाता है.
भारत का सबसे लंबा ग्लेशियर कौन सा है?
भारत सबसे बड़ा और लम्बा ग्लेशियर सियाचिन ग्लेशियर है. इसका क्षेत्रफल लगभग 41,000 वर्ग किलोमीटर है, सियाचिन ग्लेशियर कराकोरम/हिमालय में स्थित है.
भारत का सबसे छोटा ग्लेशियर कौन सा है?
भारत का सबसे छोटा ग्लेशियर लाहौल क्षेत्र की पश्चिमी सीमा पर स्थित गंगास्टैग ग्लेशियर है, जो शाहिता नाले में 5480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.
भारत में सबसे बड़ा हिमनद कौन है?
भारत का सबसे बड़ा हिमनद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बलिस्तान क्षेत्र में काराकोरम पर्वत श्रेणी पर बियाको हिमनद है.
जलवायु परिवर्तन किसे कहते हैं?
पृथ्वी पर जलवायु की स्थिति में परिवर्तन जलवायु परिवर्तन कहा जाता है, इसमें ज्वालामुखी विस्फोट , प्लेट टैकटोनिक्स और विकिरण जैसे कारक शामिल है. इन सभी कारकों की गतिविधियां जलवायु परिवर्तन का कारण बनती है, जलवायु परिवर्तन से वनों, जल, वन्यजीवों पर विशेष प्रभाव पड़ता है.
हाल ही में जलवायु में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बहुत अधिक परिवर्तन देखने को मिला है जिससे पृथ्वी पर संकट बढ़ रहा है.
क्या कारण है कि हिमालय पर भूस्खलन अधिक सक्रिय है?
हिमालय पर भूस्खलन भूकंप के कारण अधिक सक्रिय हैं हिमालयी क्षेत्र में होने वाली बर्फबारी जब पिघलती है तो वह मिट्टी को मुलायम बना देती है, जिससे भूस्खलन की समस्या बढ़ जाती है.
दुनिया की नई पर्वत श्रंखला हिमालय को लगातार बढ़ रही है, जिससे और अधिक भूस्खलन की संभावना बढ़ती है और भूकंप कई बार पहाड़ों के ढलान को अव्यवस्थित कर देती है, भूस्खलन का बड़ा कारण इन्हीं ग्लेशियरों का पिघलना है.